इमाम हुसैन (अ.स.) की याद में सनकोला/SANKOLA में 30 अगस्त को सालाना झरनी प्रोग्राम, 30 अगस्त को गूँजेंगी या हुसैन की सदाएँ

Md karim Didar
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सनकोला गाँव का सालाना झरनी प्रोग्राम

30 अगस्त को इमाम हुसैन (अ.स.) की याद में होगा ऐतिहासिक आयोजन

स्थान: गाँव सनकोला, पोस्ट सनकोला, पंचायत बेलवा, प्रखंड बारसोई, ज़िला कटिहार, बिहार


मुक़द्दिमा: ग़म-ए-हुसैन से रोशन होने को तैयार गाँव

ज़िला कटिहार के बारसोई प्रखंड की पंचायत बेलवा में बसा छोटा सा गाँव सनकोला, 30 अगस्त की तारीख़ को एक ऐसी रूहानी रोशनी में नहाने वाला है जब वहाँ का मशहूर झरनी प्रोग्राम आयोजित होगा। यह प्रोग्राम हर साल चेहलुम के मौक़े पर होता है और इसका मक़सद इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफ़ादार साथियों की कुर्बानियों को याद करना है।


सनकोला का झरनी प्रोग्राम महज़ एक मज़हबी रस्म नहीं होगा, बल्कि यह एक ईमानी पैग़ाम होगा जो नौजवानों और बुज़ुर्गों दोनों को सब्र, इस्तिक़ामत और इंसाफ़ का सबक़ देगा।


इस्लामी तअ’रुफ़: मोह़र्रम और चेहलुम का मक़ाम

इस्लामी साल का पहला महीना मोह़र्रम है। लेकिन यह महीना सिर्फ़ कैलेंडर का आग़ाज़ नहीं, बल्कि ग़म और आँसुओं का पैग़ाम है। क्योंकि इसी महीने की 10 तारीख़ को कर्बला का वह दर्दनाक वाक़िआ पेश आया था जिसमें हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके अहल-ए-बैत ने इस्लाम की सरबलंदी के लिए अपनी जानें कुर्बान कर दीं।


यज़ीदी ताक़तें चाहती थीं कि इमाम (अ.स.) झुक जाएँ, लेकिन उन्होंने कहा:


> “हुसैन मौत को इज़्ज़त समझते हैं, और ज़ुल्म के सामने सर झुकाना ज़िल्लत।”


इसी वजह से दुनिया भर के मुसलमान हर साल मोह़र्रम और फिर चेहलुम के मौक़े पर इमाम हुसैन (अ.स.) का ग़म मनाते हैं। चेहलुम यानी शहादत के चालीस दिन बाद, जब अज़ादार फिर से जमा होकर मातम, नौहा और सोज़ख़्वानी करेंगे। इसी दिन सनकोला का मशहूर झरनी प्रोग्राम भी होगा।

30 अगस्त का इंतज़ार: जब गाँव ग़म में डूबेगा

इस साल 30 अगस्त को सुबह से ही सनकोला गाँव का माहौल बदल जाएगा। गली-कूचों से अज़ादारों के क़ाफ़िले गुज़रेंगे। बच्चे, नौजवान और बुज़ुर्ग सबके सब काले कपड़े पहनकर शामिल होंगे। औरतें पर्दे में दुआओं और सलाम पेश करेंगी।


झरनी प्रोग्राम की शुरुआत नौहा-ख़्वानी से होगी। जब या हुसैन… या हुसैन की सदाएँ गूँजेंगी तो माहौल ग़मगीन हो जाएगा। लोग अपने सीने पर मातम करेंगे और हर तरफ़ आँसुओं का सैलाब होगा।


इंतज़ामात: सनकोला झरनी टीम और रज़वी ग्रुप की कोशिशें

इस बड़े प्रोग्राम का इंतज़ाम आसान नहीं होता। लेकिन यहाँ की दो मशहूर टीमें, सनकोला झरनी टीम और सनकोला रज़वी ग्रुप, इस पूरी ज़िम्मेदारी को निभाएँगी।


दोनों टीमों ने पहले ही साफ़-सफ़ाई, पानी, बैठने की जगह, बिजली और लाइटिंग का इंतज़ाम शुरू कर दिया है। बाहर से आने वाले मेहमानों के इस्तक़बाल के लिए ख़ास इंतज़ाम किए गए हैं। कोशिश यही होगी कि कोई प्यासा ना रहे, कोई परेशान ना हो—यही उनका मक़सद होगा।


मैनेजिंग हेड Md शाहिद और नौजवानों का जज़्बा


इस सालाना प्रोग्राम की रहनुमाई मुख्य प्रबंधक (Managing Head) Md शाहिद करेंगे। उनकी अगुवाई में गाँव के तमाम नौजवान दिन-रात मेहनत कर रहे हैं।


कोई पानी बाँटेगा, कोई साउंड सिस्टम देखेगा, तो कोई अज़ादारों को राह दिखाएगा। इन नौजवानों का जज़्बा देखने लायक़ होगा। सबका मक़सद एक ही होगा—इमाम हुसैन (अ.स.) की मोहब्बत को ज़िंदा रखना।



महफ़िल का माहौल: ग़म और मोहब्बत का संगम

जब नौहा-ख़्वान ग़मगीन आवाज़ में कहेंगे

> “शहादत-ए-हुसैन (अ.स.) बेशकीमती है…”

तो पूरा मज़मा रो पड़ेगा। मातमी सीनों पर हाथ मारेंगे, बच्चे भी अपने छोटे हाथों से मातम करेंगे। औरतों की आँखों से आँसू बहेंग

यह महफ़िल इंसान को मजबूर कर देगी कि वह कर्बला का मंज़र आँखों में ताज़ा कर ले।



ईमानी पैग़ाम: सब्र और इस्तिक़ामत

सनकोला का झरनी प्रोग्राम यह याद दिलाएगा कि हुसैन (अ.स.) ने सिर्फ़ इस्लाम ही नहीं बचाया, बल्कि इंसानियत को भी ज़ुल्म से बचाया।


आज के दौर में जब इंसानियत बार-बार आज़माई जाती है, कर्बला सबक़ देगी

सब्र रखना

हक़ पर क़ायम रहना

ज़ुल्म के सामने सर ना झुकाना


सामाजी असर: इत्तेहाद और मोहब्बत की मिसाल

इस प्रोग्राम का असर सिर्फ़ मज़हबी दायरे तक नहीं होगा। बल्कि इसका बड़ा सामाजी असर भी है।

गाँव के लोग आपस में मिलकर काम करेंगे। कोई मज़हब या बिरादरी की दीवार नहीं रहेगी। सब एक हो जाएँगे। यही वजह है कि आस-पास के गाँवों के लोग भी कहेंगे कि सनकोला का झरनी प्रोग्राम “अमन और मोहब्बत” की असली मिसाल है।



दुआ और इख़्तिताम

30 अगस्त को जब यह प्रोग्राम सम्पन्न होगा, तो आख़िर में दुआ की जाएगी:

> “ऐ अल्लाह! हमें हुसैन (अ.स.) के रास्ते पर क़ायम रख। हमें सब्र, इंसाफ़ और मोहब्बत की दौलत दे। हमारे नौजवानों को सलामत रख और इस प्रोग्राम को हमेशा के लिए क़ायम रख।”

✍️ लेखक: Md Karim Didar

यह रिपोर्ट इस्लामी एहतराम, इंसानी लहज़ा और रूहानी अंदाज़ में लिखी गई है।

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