क्या है SIR विवाद?
SIR, यानी Statewide Intensive Revision, चुनाव आयोग द्वारा समय-समय पर मतदाता सूचियों को अपडेट करने की एक प्रक्रिया है। इसका उद्देश्य मृत, डुप्लीकेट, या स्थानांतरित हो चुके मतदाताओं के नाम हटाना और नए योग्य मतदाताओं के नाम जोड़ना है। लेकिन इस बार विपक्ष का आरोप है कि इस प्रक्रिया में बड़ी संख्या में वैध मतदाताओं के नाम गलत तरीके से हटाए गए, जिससे चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने कहा कि मतदाता सूची से नाम हटाना किसी व्यक्ति के संवैधानिक अधिकार को प्रभावित करता है। इसीलिए आयोग को पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता रखनी होगी। अदालत ने आदेश दिया कि —
1. हटाए गए सभी मतदाताओं की नामावली (लिस्ट) सार्वजनिक की जाए।
2. प्रत्येक नाम हटाने के पीछे का कारण स्पष्ट रूप से दर्ज और प्रकाशित किया जाए।
3. चुनाव आयोग 22 अगस्त 2025 तक अदालत में अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करे।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
इस फैसले के बाद बिहार में सियासी बयानबाज़ी तेज हो गई है।
विपक्षी दलों ने कहा कि यह फैसला मतदाता दमन को रोकने में अहम कदम है और इससे चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता बनी रहेगी।
सत्ताधारी दल का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय चुनावी प्रणाली में जनविश्वास और पारदर्शिता को और मजबूत करेगा।
आगे क्या होगा?
चुनाव आयोग के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती 65 लाख हटाए गए मतदाताओं की सही और पूरी सूची तैयार कर उसे जनता के सामने लाना है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में मतदान प्रतिशत और राजनीतिक समीकरणों पर बड़ा असर डाल सकता है।